किसान के लिए एटीएम है - (कुफरी नीलकंठ) नीले आलू की खेती
सब्जियों के राजा आलू की नई प्रजाति नीले रंग के आलू के उत्पादन से किसानों को अन्य फसलों के मुकाबले अधिक मुनाफा हो रहा है। आधा एकड़ में लगभग ढाई लाख तक कमाई की जा सकती है। नील आलू में औषधीय गुण होते हैं, यह एंटी कैंसर है इस वजह से मेट्रो सिटीज में इसकी अच्छी डिमांड है। इसमें 100 माइक्रोग्राम एंथोसाइएनिन प्रति 100 ग्राम फ्रेश वेट और लगभग 200 माइक्रोग्राम करॉटिनाइड्स प्रति 100 ग्राम फ्रेश वेट होते हैं जो इसे अन्य आलू की प्रजातियों से खास बनाते हैं।
यदि नीले आलू की खेती वैज्ञानिक तरह से की जाए तो किसानों के लिए यह फसल एटीएम से कम नहीं है। नीला आलू एक प्रकार की आलू की किस्म है जो की शिमला अनुसंधान केंद्र के द्वारा तैयार की गई है। इस बार ठंड देर से पढ़ रही है इसलिए इस प्रजाति के आलू की खेती का यह सही समय है यह फसल 105 दिन में तैयार हो जाती है।
भूमि एवं जलवायु नीले आलू की खेती के लिए दोमट रेतीली मिट्टी बहुत अच्छी होती है। समान पीएच की मिट्टी में बुवाई की जा सकती है। भूमि में उचित जल निकास आवश्यक है, क्योंकि आलू की कंठ जमीन के अंदर होती है इसलिए मिट्टी का भुरभुरा होना आवश्यक है। बुवाई के समय खेत में नमी भी होनी चाहिए।
बीज व बुवाई नीले आलू का बीज शिमला अनुसंधान केंद्र से प्राप्त किया जा सकता है। 800 कंद प्रति एकड़ के हिसाब से बुवाई करें, बीज उपचार हेतु 15 लीटर साफ पानी में 1 किलो चूना पत्थर डालकर 10 से 15 मिनट के लिए छोड़ दें फिर निकाल कर 10 से 15 मिनट छाया में फैला कर सूखने पर ही बुवाई करें। इस फसल को खुले खेती या मोनो फसल प्रणाली में 8 से 9 इंच की पंक्ति से पंक्ति की दूरी पर एक फीट चौड़ी मेड बनाकर और आधा फीट की नाली बनाकर पोटैटो प्लांटर से बुवाई करें, वहीं मल्टी लेयर खेती की प्रणाली में 4 फीट चौड़ी बेड पर तीन लाइन में 8 से 9 इंच की दूरी और ढाई से 3 इंच की गहराई बुवाई करें।
उर्वरक एवं खाद आलू की फसल में अन्य फसलों की मात्रा में अधिक उर्वरक एवं खाद लगती है, इसमें सड़ी गोबर की खाद 250 कुंटल तथा 5 कुंटल नीम या सरसों की खली का या 40 कुंटल वर्मी कंपोस्ट रासायनिक उर्वरकों में 175 किलो नाइट्रोजन, 80 किलो फास्फोरस, 100 किलो पोटाश को खेत में डाल सकते हैं। नाइट्रोजन की आधी मात्रा बुवाई के समय व दूसरा भाग खेत में खड़ी फसल में मिट्टी चढ़ाते समय देना चाहिए। बुवाई के समय 100 किलो चूने की डष्ट का छिड़काव करना चाहिए।
सिंचाई 2 से 3 पानी देकर भी इस आलू की फसल ली जा सकती है।
रोग एवं उपचार यह किस्म पछेती झुलसा रोग के लिए सहनशील होती है। कट वर्म, व्हाइट ग्रब के लिए कारटप हाइड्रोक्लोराइड 4G एट @ 40 केजी/ हेक्टेयर का इस्तेमाल करें।
उपज यह फसल लगभग 100 से 110 दिन में तैयार हो जाती है। इसकी सामान्य उपज 350 कुंतल प्रति हेक्टेयर है और यह बाजार में 60 से 70 रुपए प्रति किलो से बिकती है। वर्तमान में बीज के रूप में इसके दाम ₹100 प्रति किलो है।